इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि फादर, मौलाना या कर्मकांडी किसी को भी जबरन धर्म परिवर्तन कराने का अधिकार नहीं है। अगर कोई गलत बयानी, धोखाधड़ी, अन...
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि फादर, मौलाना या कर्मकांडी किसी को भी जबरन धर्म परिवर्तन कराने का अधिकार नहीं है। अगर कोई गलत बयानी, धोखाधड़ी, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती और प्रलोभन देकर ऐसा कराता है तो वह यूपी धर्मांतरण विरोधी अधिनियम के तहत जिम्मेदार होगा। यह तल्ख टिप्पणी कर न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल की पीठ ने गाजियाबाद के थाना अंकुर विहार के मौलाना मोहम्मद शाने आलम की जमानत याचिका खारिज कर दी।मोहम्मद शाने आलम ने हाईकोर्ट में जमानत के लिए याचिका दायर की थी। शाने आलम पर युवती का जबरन धर्म परिवर्तन कराकर शादी कराने का आरोप है। वकील ने दलील दी कि याची ने केवल मार्च 2024 में युवती की शादी कराई थी। वहीं, अपर शासकीय अधिवक्ता ने जमानत का विरोध किया। दलील दी कि पीड़िता ने अपने बयान में कहा है कि मौलाना ने धर्म परिवर्तन करने के लिए मजबूर किया।कोर्ट ने कहा, देश का संविधान प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म को मानने व प्रचार करने का मौलिक अधिकार देता है। संविधान सभी व्यक्तियों को धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है, जो भारत की सामाजिक सद्भाव और भावना को दर्शाता है। संविधान के अनुसार राज्य का कोई धर्म नहीं है। राज्य के समक्ष सभी धर्म समान हैं।

हालांकि, हाल के दिनों में ऐसे कई उदाहरण सामने आए हैं, जहां भोले-भाले लोगों का गलत बयानी, बल, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, प्रलोभन या धोखाधड़ी से धर्म परिवर्तित किया गया। अदालत ने कहा कि आरोपी यूपी गैरकानूनी धर्म परिवर्तन निषेध अधिनियम 2021 के तहत उत्तरदायी है। न्यायालय ने पीड़ित के बयान पर विचार करते हुए आरोपी की जमानत याचिका खारिज कर दी।
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