Page Nav

HIDE

Grid

GRID_STYLE
TRUE

Pages

Breaking

latest

🔴LIVE TVदेश प्रदेश की बड़ी खबरें -

पारसियों के दोखमेनाशिनी के बजाय ऐसे होगा अंतिम संस्कार

टाटा समूह (Tata Group) ने मानद चेयरमैन और दिग्गज उद्योगपति रतन टाटा (Ratan Tata death) का निधन बुधवार, 9 अक्टूबर 2024 को देर रात करीब 11:30 ...

टाटा समूह (Tata Group) ने मानद चेयरमैन और दिग्गज उद्योगपति रतन टाटा (Ratan Tata death) का निधन बुधवार, 9 अक्टूबर 2024 को देर रात करीब 11:30 बजे हुआ. उन्होंने मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल (Breach Candy Hospital) में अंतिम सांस ली. रतन जी 86 वर्ष के थे.रतन टाटा पारसी पंथ समुदाय (Parsi Community) से ताल्लुक रखते थे. लेकिन सूत्रों के अनुसार उनका अंतिम संस्कार पारसी समुदाय के रीति-रिवाजों के बजाय वर्ली के श्मशान घर में किए जाने की बात कही जा रही है. उनका पार्थिक शरीर वर्ली के पारसी श्मशान भूमि में लाया जाएगा. यहां प्रेयर हॉल में शव को रखकर करीब 45 मिनट तक प्रार्थना होगी. प्रार्थना में पारसी रीति से गेह-सारनू पढ़ा जाएगा. इसके बाद शव के मुख में एक कपड़े का टुकड़ा रखकर अहनावेति का पहला अध्याय पढ़ा जाएगा. यह पारसियों के शांति प्रार्थना की एक प्रक्रिया है. इसके बाद शव को इलेक्ट्रिक अग्निदाह में रखकर अंतिम संस्कार की प्रकिया पूरी होगी.
ऐसे में रतन टाटा के अंतिम संस्कार में पारसियों के दोखमेनाशिनी (dokhmenashini) परंपरा का पालन नहीं किया जाएगा. पारसियों में अंतिम संस्कार की प्रक्रिया अन्य समुदाय से अलग होती है. आइये जानते हैं पारसियों में मृत्यु के बाद कैसे होती है दोखमेनाशिनी परंपरा- कैसे होता है पारसियों का अंतिम संस्कार पारसी समुदाय में मृत्यु के बाद शव की अंतिम संस्कार की प्रकिया को दोख्मा कहा जाता है. पारसियों में मृत्यु के बाद शव को न ही जलाया जाता है, ना ही दफनाया जाता है और ना ही बहाया जाता है. इन सभी नियमों के बजाया पारसी धर्म में शव को पारंपरिक कब्रिस्तान, जिसे टावर ऑफ साइलेंस या दखमा कहते हैं, वहां खुले स्थान पर आसमान के नीच रख दिया जाता है और गिद्ध आकर शव को खाते हैं. पारसियों के अंतिम संस्कार की यह परंपरा लगभग तीन हजार वर्ष पुरानी है. इस परंपरा से किए जाने वाले अंतिम संस्कार की प्रकिया को पारसियों के लिए शुद्धता और पवित्रता का प्रतीक माना जाता है. इस परंपरा को लेकर पारसियों का ऐसा मानना है कि इंसानी शरीर प्रकृति की देन है और मौत के बाद इसे प्रकृति को ही वापिस कर देना चाहिए. लेकिन धीरे-धीरे लोग इस परंपरा को छोड़ते जा रहे हैं.

No comments

अपना विज्ञापन बॉक्स लगवाएं


अपना विज्ञापन बॉक्स लगवाएं